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बागवानी फसल

आधुनिक तकनीक से बीन्स व सब्जी पैदा कर नवनीत वर्मा बने लखपति

आधुनिक तकनीक से बीन्स व सब्जी पैदा कर नवनीत वर्मा बने लखपति

मध्य प्रदेश के बैतूल निवासी किसान नवनीत वर्मा वर्तमान में बीन्स एवं सब्जियों को देश के साथ साथ विदेशों में भी निर्यात कर रहे हैं। पूर्व में पारंपरिक कृषि से हताश होकर आधुनिक खेती की तरफ रुख किया, जिसके लिए उन्होंने इधर उधर से कर्ज लेकर इसकी तैयारी की। अन्य कई सारे किसान इसी कारण से आधुनिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। आधुनिक खेती में किसानों को अत्यधिक श्रम नहीं करना पड़ता एवं किसान परंपरागत खेती की अपेक्षा शीघ्र पैदावार अर्जित कर लेते हैं। पारंपरिक खेती की तुलना में किसान बागवानी फसलों के जरिये अधिक बार पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए कमाई भी पारंपरिक फसलों से अधिक होती है। इन्ही सब पहलुओं को देखते हुए पारंपरिक कृषि प्रणाली की जगह आधुनिक तकनीक से सब्जियों का उत्पादन वर्तमान में किसानों की प्राथमिकता बन गयी है।

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इस बात के एक उदाहरण मध्य प्रदेश के बैतूल निवासी किसान नवनीत वर्मा हैं। सोयाबीन, गन्ना, मूंग, मक्का, गेहूं की कृषि आजमाने के बाद जब आय कम होने लगी तो उन्होंने अपने मित्र की सलाह मानकर सब्जियों व बीन्स की खेती करना प्रारंभ कर दिया। जिसका बेतहर संरक्षण एवं उत्तम पैदावार लेने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया, जिसके अंतर्गत उन्होंने शेडनेट एवं पॉलीहाउस जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया। कभी कर्ज लेकर आधुनिक खेती करने वाले नवनीत वर्मा आज मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की मंडियों समेत अन्य अरब देशों तक सब्जियों व बीन्स को बेचकर औसतन १ लाख रुपये माह के हिसाब से अर्जित कर रहे हैं।

नवनीत कितने एकड़ भूमि में सब्जियों का उत्पादन करते हैं ?

आपको बतादें कि नवनीत वर्मा ने 10 एकड़ भूमि में मौसंबी, स्ट्राबैरी, स्ट्राबैरी एवं बेर का उत्पादन प्रारंभ किया था। रोचक बात यह है कि किसान नवनीत वर्मा के ही एक मित्र ने उनको सब्जियों की खेती करने के लिए सलाह दी थी। उन्होंने मित्र की सलाह को बिना किसी भय के मान लिया एवं कर्ज लेकर के सब्जियों की पैदावार प्रारंभ करदी।

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सरकार आधुनिक तकनीकों से खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कई लाभकारी योजनाओं के अंतर्गत शेडनेट आदि तकनीकों पर अनुदान देती है। जिसका लाभ लेकर नवनीत भी अब तक १ एकड़ भूमि में शेडनेट लगा चुके हैं और आज अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने पहले २० लाख का खर्च कर ककड़ी, गोभी, टमाटर लगाए परन्तु बीन्स के जरिये अधिक आय होने के कारण उन्होंने सिर्फ बीन्स की ही फसल लगाने का निर्णय किया। बीन्स की खेती में २० प्रतिशत रासायनिक उर्वरक व ८० प्रतिशत जैविक खाद का उपयोग होता है। नवनीत वर्मा बीन्स के बीज भी उत्पादित करते हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

हमारे यूजर श्री संजय शर्मा जी, राकेश कुमार ग्राम कलुआ नगला, ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी मांगी थीड्रैगन फ्रूट मूलतः वियतनाम,थाईलैंड,इज़रायल और श्रीलंका में मशहूर है.या आप कह सकते हैं की वहीं से ये दुनियां में फैला है.ड्रैगन फ्रूट का पेड़ कैकटस प्रजाति का होता है। इसे कम उपजाऊ मिट्टी और कम पानी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसको बीज के साथ भी उगाया जा सकता है लेकिन ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है इसको कटिंग के साथ उगाने की सलाह दी जाती है इसके फ्रूट से शरीर को कई पोषक तत्व मिलते हैं इसको खाने से मधुमेह, शरीर में दर्द और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो की शरीर को कई तरह के रोगों से लड़ने में सहायता करता है। भारत में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी बढ़ने लगी है।

लगाने का समय:

ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।

मिट्टी की सेहत:

इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी  का ठहराब न हो।

उपयुक्त जलवायु:

इसको बहुत ज्यादा तापमान भी बर्दास्त नहीं होता नहीं होता है तो इससे बचने के लिए इसके लिए छाया की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे गर्मी से बचने के लिए इसमें समय समय पर पानी देना होता है. पानी देने के लिए ड्राप सिचांई ज्यादा अच्छी रहती है. एक बार कम तापमान में इसका पौधा जम जाये तो ये ज्यादा तापमान को भी झेल लेता है।

खेत की तैयारी:

इसके लिए खेत को समतल करके अच्छी जुताई करके 2 मीटर के अंतराल पर 2 X2 X2 फुट के गड्ढे बना देने चाहिए तथा इसको 15 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इसकी गर्मी निकल जाये उसके बाद इसमें गोबर की सूखी और बनी हुई खाद बालू , मिटटी और गोबर को बराबर के अनुपात में गड्ढे में भर देना चाहिए और कटिंग लगाने के बाद रोजाना शाम को ड्राप सिंचाई करनी चाहिए. ये पौधे को जमने में और बढ़ने में सहायता करता है।

ड्रैगन फ्रूट्स के प्रकार:

[caption id="attachment_2984" align="aligncenter" width="300"]Dragon fruit ड्रैगन फल[/caption] ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।

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रखरखाब:

  • इसके पेड़ को किसी सहारे की जरूरत होती है क्योकि जब पेड़ बढ़ता है तो ये अपना वजन सह नहीं पता है तो इसके पेड़ के पास कोई सीमेंटेड पिलर या लकड़ी गाड़ देनी चाहिए जो की इसके पेड़ का बजन सह सके।
  • आप ड्रैगन फलों के पौधों को कटिंग और बीज दोनों से उगा सकते हैं। हालांकि, बीज द्वारा ड्रैगन फल की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें लंबा समय करीब करीब 5 साल का वक्त लग जाता है।
  • जब आप कटिंग से ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, तो 1 फुट लंबाई का 1 साल पुराना कटिंग लगाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
  • ड्रैगन फ्रूट कुछ शेड को सहन कर सकता है और गर्म जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता देता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.ड्रैगन फ्रूट प्लांट को मध्यम नम मिट्टी की आवश्यकता होती है जो कि ड्राप सिंचाई से पूरी कि जा सकती है.
  • आप फूल और फल आने के समय पानी की मात्रा बढ़ा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट कि खेती में ड्रिप सिंचाई ही सबसे उपयुक्त होती है।
  • ड्रैगन फल आसानी से बर्तन, कंटेनर, छत पर और घर के बगीचे के पिछवाड़े में उगाए जा सकते हैं.यदि आप कंटेनर को सूरज की रोशनी के लिए खिड़की के पास रखते हैं, तो ड्रैगन फलों को घर के अंदर उगाया जा सकता है।
  • ड्रैगन फलों के पौधों को दुनिया के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय स्थानों में उगाया जा सकता है।
  • किसी भी अन्य फलों के पौधों की तरह, ड्रैगन फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 40 ° C के तापमान तक सबसे अच्छा उगाया जा सकता है।

बाजार:

इसकी मांग वहां ज्यादा होती है जहाँ हेल्थ को लेकर लोग जागरूक होते है इसका मतलब है की आप इसको बड़े शहरों में बेच सकते हो जहाँ आपको इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी. इसका कीमत 150 से 250 रुपये किलो के हिसाब से होती है इसको अगर एक्सपोर्ट करना हो तो जैसे ही इसका रंग लाल होना शुरू हो तभी इसको तोड़ लेना चाहिए तथा ध्यान रहे की इसमें कोई निशान या किसी बजन से दबे नहीं, नहीं तो इसके ख़राब होने के चांस बढ़ जाते है।

रोग:

ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।

खाद:

  • ड्रैगन फ्रूट्स को खाद की जरूरत ज्यादा होती है. ये एक गूदा वाला फल होता है तो इससे अच्छा और बड़ा फल लेने के लिए इसके  फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • पौधे की उपलब्धता और बाजार के बारे में स्थान स्थान के हिसाब से बदल जाते हैं. इसके लिए बेहतर है की आप अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से बात करें तथा पूरी जानकारी लेने के बाद ही इसकी खेती शुरी करें।
इस देश में प्याज की कीमतों ने आम जनता के होश उड़ा दिए हैं

इस देश में प्याज की कीमतों ने आम जनता के होश उड़ा दिए हैं

प्याज बागवानी के अंतर्गत अत्यधिक खपत होने वाली सब्जी है। जिसके मूल्य में बढ़ोत्तरी होने पर लोगों पर काफी प्रभाव पड़ता है। भारत में जब भी प्याज के दाम बढ़ते हैं, तो लोगों को काफी परेशानी होने लगती है। फिलहाल फिलीपींस (Philippines) की भी यही स्थिति देखने को मिल रही है। क्योंकि फिलीपींस में प्याज के भावों ने तबाही मचा रखी है। वहां प्याज भारतीय करेंसी की तुलना में 900 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जा रही है। बागवानी फसलें जैसे कि भावों को संतुलन में रखना बेहद आवश्यक होता है। इनके भाव बढ़ने से आम जनता की रसोई का बजट खराब हो जाता है। साथ ही, सरकार के ऊपर भी भाव को संतुलन में लाने के लिए दबाव बनने लगता है। इस मुद्दे पर विपक्ष भी सक्रियता से सरकार को घेरता है। अगर निरंतर भावों में बढ़ोत्तरी देखने को मिले तो आम जनता भी खिलाफ में सड़कों पर उतर आती है। आजकल फिलीपींस की भी यही दसा देखने को मिल रही है। इसकी वजह यह है कि यहाँ प्याज की कीमत में बेहद ऊंचाई पकड़ली है। वहाँ के देशवासियों की हालत दूभर हो गई है। आम जनता सरकार से भावों को नियंत्रण में लाने के लिए गुहार कर रही है।

फिलीपींस में प्याज के भाव ने लोगों को चिंतित कर दिया है

फिलीपींस में प्याज के भाव सातवें आसमान पर हैं। खबरों के मुताबिक, वहां प्याज का मूल्य 11 डॉलर पर टिकी हुई है। भारतीय करेंसी की तुलना में इसका मूल्य 900 रुपये के आसपास है। वर्तमान में भारत के बाजारों में सेब 80 से 90 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है। इस परिस्थिति में फिलीपींस के एक किलो प्याज के भाव में 10 किलोग्राम सेब खरीदे जा सकते हैं।


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फिलीपींस मार्च तक हजारों टन प्याज आयात करेगा

वर्तमान में प्याज के बढ़ते दामों की वजह से फिलीपींस सरकार भी काफी दबाव में है। प्याज की घरेलू उपभोग की आपूर्ति के लिए जनता द्वारा सरकार से निरंतर मांग की जा रही है। फिलीपींस सरकार ने इसको गहनता से लिया है। सरकार ने घरेलू खपत सुनिश्चित करने हेतु मार्च तक तकरीबन 22,000 टन प्याज का आयात हेतु घोषणा करदी है। सरकार की घोषणा के बाद आम जनता को उम्मीद और शांति मिली है। परंतु, जनता प्याज आयात हेतु प्रक्रिया को अतिशीघ्र पूर्ण करने की गुहार कर रही है।

चीन से तस्करी से आई 153 मिलियन डॉलर की प्याज जब्त

कुछ खबरों के अनुसार फिलीपींस में चीन से प्याज की तस्करी हो रही है। तस्करी-विरोधी प्रयासों की निगरानी करने वाली समिति के प्रमुख कांग्रेस जॉय सालखेडा का कहना है, कि कृषि तस्करी को संतुलन में लाने हेतु भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। चीनी नागरिक एवं उनके सहयोगियों द्वारा की जा रही प्याज की तस्करी की अच्छी तरह जाँच पड़ताल की जाएगी। वर्तमान में फिलीपींस के सीमा शुल्क ब्यूरो द्वारा चीन से तस्करी करके लाई गई 153 मिलियन डालर की लाल व सफेद प्याज को जब्त कर लिया गया है।
अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

देश की बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण बागवानी फसलों अर्थात फलों और सब्जियों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। जिसके फलस्वरूप किसानों का ध्यान बागवानी फसलों के उत्पादन की ओर ज़्यादा हो गया है। 

किसान इनके उत्पादन में रुचि भी ले रहे हैं। जिसके चलते केंद्र सरकार एसे किसानों की मदद करने, किसानों की आय बढ़ाने और बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चला रही है। 

इसी बीच बिहार सरकार द्वारा बागवानी फसल उत्पादन करने वाले किसानों के लिए एक योजना चलाई गई है। जिसके अंतर्गत किसानों को बागवानी उत्पादन के लिए सब्सिडी की व्यवस्था की गई है।

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ने विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों के उत्पादन में 50% की सब्सिडी एवं पपीता की खेती करने वाले किसानों को उत्पादन लागत का सिर्फ 25% खर्च करना होगा। मतलब किसानों को पपीता खेती पर 75% तक की मदद दी जा रही है।

बागवानी फसलें जिन पर सब्सिडी का प्रावधान :-

इस योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की बागवानी फसलों में सब्सिडी का प्रावधान है जैसे पपीता की खेती करने में कृषक को 75% तक की सब्सिडी दी जाती है।

इसके साथ ही कुछ अन्य फसलें जैसे आंवला, जामुन, कटहल, अनानास, आम, लीची, अमरूद आडियानेक प्रकार की बागवानी करने वाले किसानों के लिए 50% की सब्सिडी का प्रावधान है।

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इस योजना का लाभ उठाने के लिए निम्न नियमों का पालन करना होगा :-

इस योजना में किसान को 50% लगभग 62 हजार रुपए सब्सिडी के तौर पर दी जाती है। जिसके कारण बिहार बागवानी विभाग इस योजना का लाभ कुछ नियमों के अंतर्गत दे रही है। 

जैसे जो भी किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं उन्हें 1 एकड़ में 2500 स्ट्रॉबेरी पौधे लगाने होंगे और शर्त यह है कि उन्हें 2 मीटर की दूरी पर स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाना होगा। इसके लिए विभाग द्वारा 1.25 लाख रुपए की लागत रखी गई है जिसका 50% रुपए सरकार किसान को सब्सिडी के तौर पर देगी। 

अगर किसान इन नियमों का पालन करते हैं तो वे इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए बिहार बागवानी विभाग में संपर्क कर सकते हैं।

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आवेदन करने की तिथि :-

इस योजना में आवेदन करने की आखिरी तिथि 7 जुलाई रखी गई है। अर्थात जो किसान इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं वे इस योजना में 7 जुलाई तक आवेदन कर सकते हैं। 

लेकिन इसके पूर्व जो शर्तें इस योजना के अंतर्गत रखी गई है वह पूरी होना आवश्यक है इसके लिए किसानों का नियमानुसार खेत तैयार होना चाहिए। 

इस योजना में ऑनलाइन आवेदन करने के लिए बिहार सरकार ने ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं जिसके लिए उनके द्वारा एक लिंक तैयार की गई है। horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आप इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं।

किसानों की आय बढ़ाने का फॉर्मूला लेकर आई हरियाणा सरकार, किया 100 करोड़ का निवेश

किसानों की आय बढ़ाने का फॉर्मूला लेकर आई हरियाणा सरकार, किया 100 करोड़ का निवेश

गत वर्ष किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार को हिला दिया था। वजह साफ थी कि किसान अपनी आय को लेकर बेहद परेशान है और वह MSP को किसी हाल में नहीं छोड़ना चाहता। लेकिन इससे भी जरूरी बात है कि किसानों की आय दूसरे स्रोतों से बढ़े। इन्हीं चीज़ों को ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार ने घोषणा की है कि वे अब पारंपरिक फसलों के मुकाबले बागवानी फसलों की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। इस कदम का मकसद किसानों की आमदनी बढ़ाना है।


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प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का कहना है कि प्रदेश में किसानों के बीच बागवानी और पशुपालन पहले के मुकाबले बढ़ा है और आने वाले दिनों में इसे और बढ़ाने का लक्ष्य है। बागवानी को तरजीह देने की वजह फसल विविधीकरण नीति को बताया गया है। इस नीति के अंतर्गत फसलों के लिए जमीन हमेशा बेहतर बनी रहेगी। मौजूदा समय में हरियाणा की 7 प्रतिशत कृषि भूमि पर बागवानी होती है। साल 2030 तक बागवानी का प्रतिशत 30 तक करने की संभावनाएं हैं। इसके लिए सरकार ने 14 सेंटर ऑफ एक्सिलेंस बनाए हैं जो बागवानी में इस्तेमाल होने वाली नवीनतम टेक्नॉलजी के बारे में जानकारी देगी। इसमें निवेश की बात करें तो अब तक 100 करोड़ से ज्यादा की राशि सरकार इन्वेस्ट कर चुकी है। इसके अलावा सरकार ने पशुपालन को भी बढ़ावा दिया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि वे दूध के उत्पादन में हरियाणा को नंबर 1 बनाना चाहते हैं।


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प्रदेश के पशुओं में इस समय लंपी बीमारी का प्रकोप (Lumpy Skin disease) बढ़ा है जिसके चलते पशुपालक खासे परेशान हैं। लेकिन इसको लेकर सरकार किसानों के साथ खड़ी है और सरकार ने कहा है कि वे 20 लाख पशुओं का वैक्सिनेशन कराएंगे। अभी उनके पास 3 लाख वैक्सीन उपलब्ध हैं जबकि 17 लाख वैक्सीन का ऑर्डर किया गया है। हाल ही में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पशुपालन और बागवानी के दो नए केंद्रों को लॉन्च किया है।


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ये अनुसंधान केंद्र खरकड़ी में हैं जिनके नाम क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र व पशुविज्ञान केंद्र हैं। गौर करने वाली बात है कि इन केंद्रों को बनाने के लिए ग्राम पंचायत खरकड़ी ने 120 एकड़ जमीन दी है। इन केंद्रो को बनने में 39 करोड़ रुपये लगेंगे और पूरा प्रोजेक्ट 2 सालों में बनकर तैयार हो जाएगा। इन केंद्रों में आपको देश विदेश की सब्जियों, फलों, औषधीय और सुगंधित पौधों, मसालों की वैराइटी से संबंधित हर चीज उपलब्ध होगी। आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन केंद्रों से आपको क्या फायदा होगा, तो आपको बता दें इन केंद्रों में बागवानी फसलों की सबसे बेहतरीन किस्मों का विकास किया जाएगा जो कीटों को लगने नहीं देंगी और फसलों का विकास बेहतरीन ढंग से होगा। साथ ही किसान यहां से बढ़िया क्वालिटी वाले पौधे व बीज ले सकेंगे जिससे उन्हें फसलों में फायदा होगा। साथ ही नई तकनीक को बढ़ाने में भी काम होगा।
असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

भले ही भारत के पूर्वोत्तर राज्य विकास की मुख्यधारा में अन्य राज्यों की तरह न जुड़ पाए हों, लेकिन इन राज्यों ने अब वो कर दिखाया है जो खेती-किसानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम है। दरअसल, अब असम राज्य की मुख्य फसल विदेशों में नाम कमाने लगी है जो राज्य के निवासियों के लिए कमाल की खबर है। गौर करने वाली बात है कि उत्तर भारतीय राज्यों के इतर असम में किसान मुख्यतौर पर गेहूं की बजाय धान उगाते हैं।


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यहां के चावल की खूशबू और स्वाद कमाल का होता है जिसके चलते देशभर में, यहां से आए चावलों को लोग बड़े चाव से खाते हैं और खपत भी काफी है। चूंकि, लोगों के बीच असम से आने वाले चावल खासे पसंद किए जाते हैं, यही वजह है कि पिछले सालों के दौरान यहां कि कुछ किस्मों को जीआई टैग दिया गया था। अब हाल ही में असम के चावल की कुछ किस्में दुबई भेजी गईं। इन चावलों को APEDA के सहयोग से भेजा गया। दुबई भेजी जाने वाली किस्मों का नाम जोहा और एजुंग (Izong rice) हैं। गौर करने वाली बात है कि असम का जोहा चावल (Joha Rice) बासमती से कम नहीं है। इसकी विशेषता के कारण ही इसे जीआई टैग दिया गया है। वैसे इसकी सुगंध बासमती जैसी नहीं है बल्कि थोड़ी अलग है। लेकिन जोहा अपने स्वाद, खुशबू और खास तरह के आनाज को लेकर जाना जाता है। इसकी विदेशों में मांग बासमती से कम नहीं है। यह खबर असम के किसानों को उत्साहित करने वाली है।


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APEDA के अध्यक्ष एम अंगमुथु ने कहा है कि जिस तरह का मौसम असम का रहता है, उसे देखते हुए यहां सभी तरह की बागवानी फसलें उगाई जा सकती हैं। साथ ही यहां से निर्यात भी आसानी से किया जा सकता है क्योंकि बगल से भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन जैसे देश हैं जो राज्य से अपनी सीमा साझा करते हैं। वैसे चावल ही असम की एकमात्र फसल नहीं है जिसकी विदेशों में मांग है। बल्कि यहां के नींबुओं की मांग मिडिल ईस्ट और ब्रिटेन में बहुत है। यही वजह है कि यहां से अब तक 50 मीट्रिक टन नींबू का एक्सपोर्ट पहले ही किया जा चुका है। यही नहीं, यहां के कद्दू और लीची भी बाहर भेजे जा रहे हैं और लोग इनके स्वाद को खासा पसंद भी कर रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों ने पिछले छह सालों में खेती में अपना नया मुकाम स्थापित किया है, जो इन राज्यों की सफलता की कहानी कहता है। एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले छह सालों में यहां उगने वाले कृषि उत्पादों के निर्यात में करीब 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जाहिर है कि आने वाले सालों में इन राज्यों का कृषि में योगदान और बढ़ेगा और जिसका असर देश की जीडीपी में होगा, जो सुखद बात है।
बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।

देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं। 

सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

 इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।

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खाद्यान्न फ़सलों की अपेक्षा बागवानी फसलों में हो रही है वृद्धि

सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है। 

वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।

साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।

बागवानी फसलों से प्रदूषण में लगती है लगाम

आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं। 

ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। 

इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है। 

इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती। 

बागवानी फसलों में आधुनिक खेती से किसानों की बढ़ी आमदनी

आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।

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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है। 

बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

75% सब्सिडी लेकर उगाएं ताइवान पपीता और हो जाएं मालामाल

75% सब्सिडी लेकर उगाएं ताइवान पपीता और हो जाएं मालामाल

आजकल वह समय नहीं रहा जब किसान एक ही तरह की फसलों को पारंपरिक तरीके से उगाकर इस बात का इंतजार करते थे, कि सभी तरह की परिस्थितियां फसलों के अनुकूल रहें और उन्हें कुछ ना कुछ पैसा मिल सके। आजकल खेती के क्षेत्र में भी माहौल काफी बदल गया है। बड़े-बड़े किसान आजकल एक्सपर्ट लोगों की सलाह लेकर नई नई तकनीक और अलग-अलग तरह के संकर बीज आदि इस्तेमाल करते हुए फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। जिससे उन्हें लाखों और करोड़ों का फायदा मिल रहा है। बागवानी की फसलें जैसे फल-फूल आदि की खेती में ऐसे ही मुनाफा अच्छा रहता है। लेकिन हाल ही में बिहार के भागलपुर में एक किसान गुंजेश गुंजन ने अपने पारंपरिक तरह से की गई खेती को एक तरफ करते हुए खेती की एक नई तकनीक अपनाकर ताइवान पपीता अपने खेत में लगाया। नई तकनीक से की गई इस खेती से गुंजेश को लाखों का मुनाफा हो रहा है।

किस तरह से किया पपीते की खेती में बदलाव

गुंजेश से हुई बातचीत से पता चलता है, कि उनके पिताजी और उससे पहले उनके दादाजी भी पपीते की खेती करते थे। पपीते की खेती उनका पुश्तैनी व्यापार माना गया है, लेकिन गुंजेश ने इसमें हल्का सा बदलाव कर कुछ नया करने का सोचा। उन्होंने ताइवान से पपीते के बीज मंगवाए जो पुणे में डिलीवर किए गए. बाद में उन बीजों को उगाते समय कुछ किस्म का बदलाव करते हुए गुंजेश ने ताइवान पपीता की खेती शुरू की।


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उद्यान विभाग ने भी की मदद

बिहार में पहले से ही बागवानी फसलों के लिए सब्सिडी की सुविधा दी जाती है। गुंजेश को भी अपने पपीते की खेती के लिए उद्यान विभाग की तरफ से 75% की सब्सिडी दी गई जिसका इस्तेमाल वह बाहर से बीज मंगवाने के लिए कर सकता है। इसके अलावा यहां पर उद्यान विभाग ने अलग-अलग तरह की कंपनियों के साथ भी टाईअप करके रखा है। ताकि वह समय-समय पर किसानों को अच्छी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए खेती करने की सलाह देती रहे।

ताइवान पपीता क्यों है खास

सिंदूरी लाल रंग का यह पपीता गाइनोडेइशियस पद्धति द्वारा उगाया जाता है और यह बहुत ज्यादा मीठा होता है। इसकी ऊपरी परत आम पपीते के मुकाबले थोड़ी साफ होती है, जिसके कारण यह बहुत लंबे समय तक चल सकता है। बाकी पपीतों की तरह है यह भी गुच्छे में लगता है।


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गुंजेश से हुई बातचीत में पता चला कि शुरू में उन्हें भी इसकी फसल उगाने और उसके बाद बाजार में इसे बेचने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे। शुरू शुरू में व्यापारियों के पास उसे खुद जाना पड़ता था, लेकिन अब यह आलम है, कि व्यापारी फसल तैयार होने से पहले ही उसके पास आकर फसल का दाम निर्धारित कर लेते हैं और पहले ही उसकी सारी फसल भी बुक हो जाती है। गुंजेश की तरह ही बाकी किसान भी उसकी ही फसल पद्धति को अपनाकर 4 लाख से ₹5 लाख का मुनाफा कमा रहे हैं।
नए साल पर अपनी खेती को बेहतर बनाने के लिए खरीदें आधुनिक कृषि यंत्र, ये सरकारें दे रही हैं बंपर सब्सिडी

नए साल पर अपनी खेती को बेहतर बनाने के लिए खरीदें आधुनिक कृषि यंत्र, ये सरकारें दे रही हैं बंपर सब्सिडी

भारत सरकार चाहती है, कि देश के किसान अपने खेतों में बंपर उत्पादन प्राप्त करें, जिससे उनकी आय में बढ़ोत्तरी हो पाए। इसके साथ ही अगर किसानों की बात करें तो अब किसानों ने भी आधुनिक खेती को अपनाया है। जिसमें किसान खेती-किसानी में आधुनिक तकनीक और कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन यह अभी तक सिर्फ अमीर और बड़े किसानों तक ही सीमित है। अमीर और बड़े किसानों के पास पर्याप्त संसाधन और पैसा होने के कारण वो आधुनिक तकनीक और कृषि यंत्रों को उपयोग करते हैं, लेकिन छोटे किसान अब भी इससे वंचित हैं। भारत में ट्रेंड देखा गया है, कि अब लघु-सीमांत किसानों के साथ अब छोटे किसानों की भी आधुनिक कृषि यंत्रों की तरफ रुचि बढ़ती जा रही है। आधुनिक मशीनें कम समय, कम मेहनत और कम खर्च में फसलों से ज्यादा उत्पादन हासिल करने में मदद करती हैं। इन फ़ायदों को देखते हुए कई राज्य सरकारें अपने किसानों को आधुनिक कृषि यंत्र खरीदेने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसके तहत सरकारें आधुनिक कृषि यंत्र खरीदी पर बंपर सब्सिडी दे रही हैं, जिससे किसान भाई ये आधुनिक कृषि यंत्र अपने घर में ला पाएं और खेती किसानी में इनका उपयोग कर पाएं। कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी देने के तहत बिहार और हरियाणा की राज्य सरकारें अपने किसानों को बंपर सब्सिडी दे रही हैं। इसके लिए दोनों राज्य की सरकारों ने योजनाओं को लागू कर दिया है। अगर बिहार सरकार की बात करें तो किसानों को 90 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर पर 80 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। वहीं हरियाणा सरकार 55 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर 50 फीसद तक का अनुदान दे रही है।

सब्सिडी प्राप्त करने के लिए बिहार के किसान ऐसे करें आवेदन

बिहार की सरकार ने कृषि यंत्रों की खरीद के लिए कृषि यंत्रीकरण योजना चलाई है, जिसके अंतर्गत सरकार 90 तरह के कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान देती है। ये कृषि यंत्र जुताई, बुवाई, निकाई, गुड़ाई, सिंचाई, कटाई आदि कार्यों के लिए खरीदे जा सकते हैं। इसके अलावा सरकार गन्ना और बागवानी फसलों की खेती के लिए कुछ कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान दे रही है।


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बिहार राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा है, कि इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान की बिहार राज्य में खेती योग्य जमीन होना अनिवार्य है। जो भी किसान इस योजना के अंतर्गत आधुनिक कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान प्रात करना चाहते हैं। वो 31 दिसम्बर 2022 के पहले बिहार राज्य के कृषि विभाग के OFMAS Portal या DBT Portal पर अपना आवेदन ऑनलाइन भर सकते हैं।

हरियाणा के किसान यहां आवेदन करके प्राप्त करें अनुदान

बिहार राज्य की तरह हरियाणा की सरकार भी कृषि यंत्रों की खरीद के लिए अपने किसानों को अनुदान प्रदान करती है। राज्य सरकार ने ऐसी 55 तरह की मशीनों का चयन किया है, जिनमें किसानों को अनुदान दिया जाएगा। ये मशीनें 1500 रुपये से लेकर 25 लाख रुपये तक की हो सकती हैं। जिनमें लगभग आधी कीमत की सब्सिडी दी जाती है। हरियाणा सरकार के कृषि विभाग ने अपने नोटिस में बताया है, कि कृषि यंत्र अनुदान योजना में आवेदन करने वाला किसान हरियाणा राज्य का होना चाहिए। इसके साथ ही किसान के पास खुद की खेती योग्य भूमि होना चाहिए। किसान भाई कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए बागवानी विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट https://hortnet.gov.in/StatesNewDesign/Login-har.aspx पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन करें। इसके अलावा इस योजना की ज्यादा जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं। साथ ही हेल्पलाइन नंबर 18001802021 पर भी फोन करके पूछताछ कर सकते हैं।

राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार भी दे रही है कृषि यंत्रों की खरीदी पर अनुदान

राज्य सरकारों के साथ-साथ अब केंद्र सरकार भी आधुनिक कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान दे रही है। ताकि किसान अपनी खेती की लागत को कम कर पाएं और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सके। इसके लिए केंद्र सरकार कृषि यंत्रीकरण पर उपमिशन योजना लाई है जिसके अंतर्गत अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से किसान भाइयों को कृषि यंत्रों की खरीद पर 25 से 90 प्रतिशत की सब्सिडी देती है। इस योजना की ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए और आवेदन करने के लिए किसान भाई ऑफिशियल वेबसाइट https://agrimachinery.nic.in/ पर विजिट कर सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार की इस योजना से किसानों को 1 रुपये ब्याज पर मिलेगा फसल बीमा

महाराष्ट्र सरकार की इस योजना से किसानों को 1 रुपये ब्याज पर मिलेगा फसल बीमा

जलवायु बदलाव के दुष्परिणामों की वजह से फसल को बेहद हानि का सामना करना पड़ रहा था। परंतु, फिलहाल नव वर्ष के बजट से इस चिंता का भी समाधान कर दूर कर दिया गया है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा 1 रुपये ब्याज पर फसल बीमा देने की घोषणा की गई है। आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहा है। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव खेती किसानी पर देखने को मिल रहा है। आकस्मिक बारिश, ओले, बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते फसलें क्षतिग्रस्त होती जा रही हैं। जो कि ऐसी स्थिति है जब स्वयं किसान भी आर्थिक समस्याओं में फंस जाते हैं। देश में भी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव साफ तौर पर देखने को मिल रहे हैं। बीते वर्ष विभिन्न राज्यों में मौस्मिक मार से काफी फसल हानि देखी गई है। महाराष्ट्र में भी कुछ इसी तरह की परिस्थितियां देखने को मिलीं हैं। किसानों को बड़ी हानि से बचाने हेतु महाराष्ट्र सरकार द्वारा आर्थिक मदद देने की घोषणा की गई थी। परंतु, हाल ही में इस परेशानी का स्थायी समाधान निकालते हुए प्रदेश सरकार द्वारा 1 रुपये में फसल बीमा करवाने का ऐलान किया है।

मात्र 1 रुपये ब्याज पर मिल पाएगा फसल का बीमा

देश में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हुई फसल बर्बादी की भरपाई करने हेतु
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जारी की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत किसान स्वयं की फसल के संरक्षण हेतु एक निश्चित बीमा प्रीमियम प्रदान करता है। बदले में हानि होने की स्थिति में बीमा कंपनियों के साथ-साथ केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों की आंशिक भरपाई करती हैं। परंतु, फिलहाल महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य स्तर पर 1 रुपये के ब्याज पर बीमा योजना का ऐलान कर दिया है। इसका सर्वाधिक लाभ उन किसानों को प्राप्त होगा, जो छोटी भूमि पर कृषि करते हैं अथवा बड़ा बीमा प्रीमियम भरने में असमर्थ होते हैं।

राज्य सरकार के द्वारा फसल हानि की भरपाई की जाएगी

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत रबी फसलों हेतु 1.5 फीसद, खरीफ फसलों हेतु 2 फीसद एवं बागवानी फसलों का बीमा करवाने हेतु 5 फीसद बीमा प्रीमियम जमा करना होता है। परंतु, महाराष्ट्र सरकार द्वारा फिलहाल यह चिंता भी समाप्त कर दी गई है। यह भी पढ़ें: PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला? प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है, कि पूर्व में फसल बीमा योजना का लाभ लेने वाले किसान भाइयों से बीमा की धनराशि का 2 फीसद ब्याज लिया जाता था। फिलहाल, सरकार 1 रुपये में फसल बीमा मुहैय्या करवाने की तैयारी में जुट रही है। इस योजना के अंतर्गत सरकारी खजाने से 3312 करोड़ रुपये का खर्चा किया जाएगा।

महाराष्ट्र राज्य में भी प्राकृतिक कृषि के क्षेत्रफल में होगी वृद्धि

कृषि क्षेत्र में रसायनों के बढ़ते उपयोग से ना केवल मृदा की उपजाऊ क्षमता कमजोर होती जा रही है। साथ ही, रसायन से उत्पादित कृषि उत्पादों से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इसी वजह से फिलहाल अधिकांश राज्य सरकारें प्राकृतिक खेती का मॉडल अपना रही हैं। नव वर्ष के बजट में महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी आगामी 3 वर्ष में 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने का निर्णय किया है। इसी योजना के अंतर्गत प्रदेश में 1000 बायो-इनपुट संसाधन केंद्र की स्थापना का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस राज्य में बागवानी फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए अनुदान दिया जा रहा है

इस राज्य में बागवानी फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए अनुदान दिया जा रहा है

हरियाणा सरकार अपने स्तर से किसानों को लुभाने के लिए दिनों-दिन किसी नई सब्सिडी का ऐलान कर रही है। वर्तमान में फल व सब्जी की खेती पर किसानों को बड़ी सब्सिड़ी मिलेगी। बतादें, कि एक ओर हरियाणा में सूरजमुखी को भावांतर भरपाई योजना से बाहर निकालने की मांग को लेकर सड़कों पर आंदोलन जारी है। तो उधर, दूसरी ओर सरकार अन्नदाताओं को अपनी सब्सिडी के जरिए लुभाने का भरपूर प्रयास कर रही है। विरोध प्रदर्शन के मध्य किसानों के लिए अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल, हरियाणा राज्य सरकार ने फल व सब्जी की खेती पर अच्छा-खासा अनुदान देने की घोषणा करदी है। चलिए जानते हैं, कि किसानों को कहां और कितना अनुदान मिलेगा।

बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है

हरियाणा में किसान भावांतर योजना से सूरजमुखी को बाहर निकालने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी कड़ी में हरियाणा सरकार ने किसानों को अनुदान देने का ऐलान किया है। इसका अर्थ है, कि हरियाणा सरकार किसानों को फल व सब्जी की खेती पर अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है। दरअसल, बागवानी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से इस तरह का ऐलान किया गया है। बतादें, कि हरियाणा में जल का काफी अभाव है। जिसके चलते किसानों को प्रतिवर्ष धान-गेहूं की खेती में काफी बड़ी हानि वहन करनी पड़ती है। अब ऐसी स्थिति में सरकार ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दे रही है, जिसमें जल की कम खपत है। हरियाणा सरकार विगत दिनों से कई सारी महत्वपूर्ण योजनाओं के तहत किसानों को हर संभव अनुदान प्रदान करने में जुटी हुई है।

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हरियाणा सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

हरियाणा सरकार में बागवानी विभाग की तरफ से 'मेरा पानी मेरी विरासत' नाम से एक योजना चलाई जा रही है। इसके अंतर्गत कृषकों को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जो किसान भाई ऐसा कर रहे हैं, उनको प्रोत्साहन धनराशि भी प्रदान की जा रही है। हरियाणा सरकार प्रदेश के किसानों में पॉलीहाउस की स्थापना करने के लिए 65 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। इस पोली हाउस के अंतर्गत कम खाद और कम पानी के साथ किसी भी फल व सब्जियों की बड़े पैमान पर पैदावार की जा सकती है। पॉलीहाउस की यह भी विशेषता है, कि इसमें किसी भी मौसम में कोई भी सब्जी उत्पादित की जा सकती है। इस अनुदान का फायदा उठाने के लिए किसान भाई अपने समीपवर्ती बागवानी विभाग केंद्र से संपर्क साधें।
बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बिहार सरकार मशरूम की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

बतादें कि वर्तमान में बिहार सरकार मशरूम के ऊपर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। बिहार सरकार का कहना है, कि मशरूम की खेती से राज्य के लघु एवं सीमांत किसानों की आमदनी में इजाफा किया जा सकता है। बिहार राज्य में किसान पारंपरिक फसलों समेत बागवानी फसलों का भी जमकर उत्पादन करते हैं। यही कारण है, कि बिहार मखाना, मशरूम, लंबी भिंडी और शाही लीची के उत्पादन में अव्वल दर्जे का राज्य बन चुका है। हालांकि, राज्य सरकार से किसानों को बागवानी फसलों की खेती करने के लिए बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है. इसके लिए राज्य सरकार प्रदेश में कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. इन योजनाओं के तहत किसानों को आम, लीची, कटहल, पान, अमरूद, सेब और अंगूर की खेती करने पर समय- समय पर सब्सिडी दी जाती है।

हजारों की संख्या में किसान अपने घर के अंदर ही मशरूम उगा रहे हैं

बतादें कि मशरूम बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। साथ ही, मशरूम की खेती में काफी कम खर्चा आता है। मशरूम उत्पादन हेतु खेत व सिंचाई की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि किसान भाई चाहें तो अपने घर के अंदर भी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं। फिलहाल, बिहार में हजारों की तादात में किसान घर के अंदर ही मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। दरअसल, मशरूम अन्य सब्जियों जैसे कि लौकी, फूलगोभी और करेला आदि की तुलना में महंगा बिकता है। अब ऐसी स्थिति में मशरूम की खेती करने पर किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। यही वजह है, कि बिहार सरकार मशरूम की खेती पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 फीसद अनुदान

वर्तमान में बिहार राज्य के मशरूम उत्पादकों के लिए काफी अच्छा अवसर है। बतादें, कि फिलहाल कृषि विभाग एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत मशरूम कम्पोस्ट उत्पादन पर 50 प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्य बात यह है, कि राज्य सरकार द्वारा कंपोस्ट उत्पादन के लिए इकाई लागत 20 लाख रुपए तय की गई है। उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर किसान भाई इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। यह भी पढ़ें: बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार में पिछले साल हजारों टन मशरूम की पैदावार हुई थी

बिहार राज्य में बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार निरंतर कुछ न कुछ योजना जारी कर रही है। बिहार सरकार किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अगर किसान भाई चाहें, तो अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रखंड उद्यान पदाधिकारी अथवा अपने जनपद के सहायक उद्यान निदेशक से सम्पर्क साध सकते हैं। बतादें, कि बिहार मशरूम उत्पादन के मामले में भारत के अंदर प्रथम स्थान पर है। इसके उपरांत दूसरे स्थान पर ओडिशा आता है। विगत वर्ष बिहार में 28000 टम मशरूम की पैदावार हुई थी।